सोमवार, 30 जुलाई 2012

रोशन सड़क से आगे है तीरगी बला की/ Siddha Nath Singh

रोशन सड़क से आगे है तीरगी बला की.                  
बदबख्त बस्तियों पर रहमत नहीं खुदा की.              
क्या कीजिये इसीसे मह्जूज़ हैं मुसाफिर,                 
सूरज दिखा रहा है छवियाँ मरीचिका की.
किसने कहा था तुमसे सच का अलम उठाओ,          
जिसने भी ज़िद ये पाली, कीमत बड़ी अदा की.
मुमकिन कहाँ है रिन्दों, अब तिश्नगी का मिटना,         
दर बंद मयक़दे के, खुद पी रहे हैं साकी.
बेहतर है होशियारी कुछ और हम बढ़ा लें,
क़ातिल ने इन दिनों है शाईस्तगी  सिवा की.           
मुझसे हुआ न दौलत दुनिया की मैं जुटा लूं,
कीमत मुझे पता थी मजलूम की दुआ की.                    
हम खुद को बेशकीमत बेइंतिहा थे समझे,
बस इस जहाँ ने कीमत मिटटी के मोल आंकी.

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