शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

कुंवर बेचैन

ग़ज़ल
चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया,
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया
जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया
सूखा पुराना जख्म नए को जगह मिली
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया
आती न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया
आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया
नजरों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया
अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया
गम मिलते हैं तो और निखरती है शायरी
यह बात है तो सारे जमाने का शुक्रिया
अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर
यूँ मुझसे `कुँअर' रूठ के जाने का शुक्रिया

- कुँअर बेचैन

कोई टिप्पणी नहीं:

Birth Anniversary of Bhagat Singh भगत सिंह: ‘मत समझो पूजे जाओगे क्योंकि लड़े थे दुश्मन से!’

  वाकया तो खैर 1948 का है यानी 77 साल पुराना, लेकिन इस लिहाज से उल्लेखनीय है कि हमारे आज के सत्ताधीश, जो अब शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की याद और स...