गुरुवार, 23 अगस्त 2012

तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची

तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची
ज़ुल्फ़ कन्धे से जो सरकी तो कमर तक पहुँची
मैंने पूछा था कि ये हाथ में पत्थर क्यों है
बात जब आगे बढी़ तो मेरे सर तक पहुँची
मैं तो सोया था मगर बारहा तुझ से मिलने
जिस्म से आँख निकल कर तेरे घर तक पहुँची
तुम तो सूरज के पुजारी हो तुम्हे क्या मालुम
रात किस हाल में कट-कट के सहर तक पहुँची
एक शब ऐसी भी गुजरी है खयालों में तेरे
आहटें जज़्ब किये रात सहर तक पहुँची

1 टिप्पणी:

प्यार की कहानी ने कहा…

Ek Achhi Kahani Ka Prastutikaran Aapke Dwara. Thank You For Sharing.

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