गुरुवार, 23 अगस्त 2012

बाँटी हो जिसने तीरगी/श्यामल सुमन


बाँटी हो जिसने तीरगी उसकी है बन्दगी
हर रोज नयी बात सिखाती है जिन्दगी
क्या फर्क रहनुमा और कातिल में है यारो
हो सामने दोनों तो लजाती है जिन्दगी
लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया
यों बोझ किताबों की दबाती है जिन्दगी
है वोट अपनी लाठी क्यों भैंस है उनकी
क्या चाल सियासत की पढाती है जिन्दगी
गिनती में सिमटी औरत पर होश है किसे
महिला दिवस मना के बढाती है जिन्दगी
किरदार चौथे खम्भे का हाथी के दाँत सा
क्यों असलियत छुपा के दिखाती है जिन्दगी
देखो सुमन की खुदकुशी टूटा जो डाल से
रंगीनियाँ कागज की सजाती है जिन्दगी

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