शुक्रवार, 22 अगस्त 2008

khalil jibraan

अच्‍छाई


एक निर्जन पहाड़ पर दो साधु रहते थे। वे दोनों ईश्‍वर की पूजा करते और एक-दूसरे को बहुत चाहते थे। उनके पास मिट्टी का एक कटोरा था और यही उनकी पूंजी थी।एक दिन बूढ़े साधू के मन में कुछ आया और वह छोटे साधू के पास आकर बोला, '' हम लोगों को साथ-साथ रहते बहुत समय हो रहा है। अब हमें अलग हो जाना चाहिए। हमें अपनी पूंजी बांट लेनी चाहिए।''
सुनकर छोटा साधु उदास हो गया, उसने कहा, ''आपके जाने की बात सोचकर ही मुझे कष्‍ट हो रहा है, फिर भी यदि आपका जाना ज़रूरी है तो कोई बात नहीं।'' इतना कहकर कटोर वह कटोरा उठा लाया और बड़े साधु को देते हुए बोला, '' नहीं भैया, इसे हम बांट नहीं सकते, आप ही रख लो।''
बड़े साधु ने कहा, ''मुझे भीख नहीं चाहिए, मैं केवल अपना हिस्‍सा लूंगा, इसे बांटना ही चाहिए।''
छोटे साधु ने कहा यदि '' यह कटोरा टूट गया तो फिर मेरे या आपके किस काम का । यदि इसी में आपकी खुशी है तो पासा फेंककर तय कर लें।''
बड़े साधु ने दोहराया, '' मैं वही लूंगा जो न्‍यायपूर्वक मेरे हिस्‍से में आता है, मैं यह नहीं चाहता कि न्‍याय को भाग्‍य भरोसे छोड़ दें। यह प्‍याला बांटा ही जाना चाहिए।''
इस पर छोटे साधु को कोई उत्‍तर नहीं सूझा। थोड़ी देर बाद उसने कहा, ''अगर आपको कोई वि‍कल्‍प मंजूर नहीं है तो क्‍यों न इस झगड़े की जड़ कटोरे को तोड़कर नष्‍ट कर दें।
यह सुनकर बड़ा साधु आग बबूला हो गया, ''ओ नामर्द। तू मुझसे झगड़ता क्‍यों नहीं

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